पाकिस्तान से IQNA रिपोर्ट के मुताबिक, इस पुस्तक का अनुवाद कुरानिक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए छात्रों, शिक्षाविदों, हौज़े और जनता के उपयोग के लिए फ़ैय्याज हुसैन अलवी द्वारा सरल भाषा में किया गया है।
लाहौर में तंज़ील कुरानिक संस्थान ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है, और इस संस्थान ने अपने एजेंडे में कुरान और कुरान संस्कृति के विस्तार और प्रचार को क़रार दिया है।
शिया विद्वान व रूहानी अयतुल्लाह मोहम्मद हादी मारेफ़त, हौज़ऐ इल्मियह के कुरानिक व्याख्या और कुरानिक विज्ञान के विद्वानों में से कुरानिक विद्वान और कुरानिक शोधकर्ता थे जो, कुर्बला में पैदा हुए थे, जिन्होंने इराक में अपने सेमिनरी अध्ययन को कर्बला और नजफ़ के दो शहरों में बिताया था। 1351 में, बाषी शासन के आदेश पर उन्हें देश से निष्कासित कर दिया गया, ईरान आऐ और क़ुम में बस गऐ।
अयतुल्लाह मारेफ़त की इस क्षेत्र में बाक़ी रहीं पुस्तकें हैं, जिसमें 10-जिल्दी "अल-तम्हीद", "सयानतुल -कुरान-मिनत-तहरीफ़" और "अल-तफ़सीर और अल-मुफस्सरून" शामिल हैं। मोहम्मद हादी मारेफ़त की मृत्यु दिसंबर 2006 में हुई और उन्हें क़ुम में मासूमह (स.) के पवित्र रौज़े में दफनाया गया।
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